( तर्ज - हर देश में तू , हर भेष में तू ० )
हम प्रिती करे पर तुम न करो
यह कौन देश की रीति है ?
हम ध्यान धरे , तुम छुप जावो ,
ऐसी तुमपर क्या बीती है ? ||टेक ||
ऐ मुरलीधर ! मनमोहन ! तुम ,
फिर क्योंकर सुन्दर रूप धरे ?
बन जाते पुतना मौसी - सा ,
तब दूर भगी होती मति है || १ ||
हे बन्सीधर ! इस बन्सी में ,
इतनी मीठी क्यों तान भरी ?
भरना था गर्दभ राग कोई ,
फिर कोइ न सुनता तूती है || २ ||
अय भक्त हृदय ! इतनों के तुम ,
निभवाये कैसे जीवनको
तुकडया कहे हम नहि लायक तो
फिर तार चढी क्यों रहतीं है || ३ ||
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